भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
(बीएनएसएस)
अध्याय 26: जांचों तथा विचारणों के बारे में साधारण उपबंध
धारा: 356
(1) इस संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जब किसी व्यक्ति को उद्घोषित अपराधी घोषित किया जाता है, चाहे उस पर संयुक्त रूप से आरोप लगाया गया हो या नहीं, विचारण की वंचना करने के लिए फरार है और उसे गिरफ्तार करने का कोई तात्कालिक पूर्वेक्षण नहीं है, इसे ऐसे व्यक्ति के उपस्थित होने और वैयक्तिक विचारण के अधिकार के अभित्याग के रूप में प्रवर्तित होना समझा जाएगा और न्यायालय ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किए जाएं, न्याय हित में ऐसी रीति में और ऐसे प्रभाव के साथ, मानो वह उपस्थित था, इस संहिता के अधीन विचारण के लिए अग्रसर होगा और निर्णय सुनाएगा: परंतु न्यायालय तब तक विचारण प्रारंभ नहीं करेगा, जब तक कि आरोप की विरचना की तारीख से नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति नहीं हो जाती है। (2) न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि आगामी प्रक्रिया का उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही से पहले अनुपालन किया गया है, अर्थात्: (i) कम से कम तीस दिन के अंतराल पर लगातार दो गिरफ्तारी वारंटों को जारी करना; (ii) उद्घोषित अपराधी से विचारण के लिए न्यायालय
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