भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
(बीएनएसएस)
अध्याय 13: पुलिस को सूचना और उनकी अन्वेषण करने की शक्तियां
धारा: 187
(1) जब कभी कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध है और यह प्रतीत हो कि अन्वेषण धारा 58 द्वारा नियत चौबीस घंटे की अवधि के भीतर पूरा नहीं किया जा सकता और यह विश्वास करने के लिए आधार है कि अभियोग या सूचना दृढ़ आधार पर है तब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या यदि अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी उपनिरीक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है तो वह, निकटतम मजिस्ट्रेट को इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले में संबंधित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपि भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
(2) वह मजिस्ट्रेट, जिसके पास अभियुक्त व्यक्ति इस धारा के अधीन भेजा जाता है, इस बात पर यह विचार किए बिना कि क्या उसके पास उस मामले के विचारण की अधिकारिता है या नहीं है, अभियुक्त व्यक्ति पर विचार करने के पश्चात् कि क्या ऐसा व्यक्ति जमानत पर नहीं छोड़ा गया है या उसकी जमानत रद्द कर दी गई है, अभियुक्त का ऐसी अभिरक्षा में, जैसी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे, इतनी अवधि के लिए, जो कुल मिलाकर पूर्णतः या भागतः पंद्रह दिन से अधिक न हो, उपधारा (3) में यथा उपबंधित यथास्थिति, साठ दिन या नब्बे दिन की उसकी निरुद्ध अवधि में से प्रारंभिक चालीस दिन या साठ दिन के दौरान किसी भी समय निरुद्ध किया जाना समय-समय पर प्राधिकृत कर सकता है तथा यदि उसे मामले के विचारण की या विचारण के लिए सुपुर्द करने की अधिकारिता नहीं है और अधिक निरुद्ध रखना उसके विचार में अनावश्यक है तो वह अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास, जिसे ऐसी अधिकारिता है, भिजवाने के लिए आदेश दे सकता है:
(3) मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का पुलिस अभिरक्षा से अन्यथा निरोध पंद्रह दिन की अवधि से आगे के लिए उस दशा में प्राधिकृत कर सकता है जिसमें उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त आधार विद्यमान है, किंतु कोई भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का इस उपधारा के अधीन अभिरक्षा में निरोध--
(i) कुल मिलाकर नब्बे दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहां अन्वेषण ऐसे अपराध के संबंध में है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वर्ष की अवधि या अधिक के लिए कारावास से दंडनीय है;
(ii) कुल मिलाकर साठ दिन से अधिक की अवधि के लिए
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