भारतीय न्याय संहिता
(बीएनएस)
अध्याय 17: सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में
धारा: 330
330. (1) जो कोई यह पूर्वावधानी बरतने के पश्चात् गृह-अतिचार करता है कि ऐसे गृह-अतिचार को किसी ऐसे व्यक्ति से छिपाया जाए जिसे उस निर्माण, तम्बू या जलयान में से, जो अतिचार का विषय है, अतिचारी को अपवर्जित करने या बाहर कर देने का अधिकार है, वह 'प्रच्छन्न गृह-अतिचार" करता है, यह कहा जाता है ।
(2) जो व्यक्ति गृह-अतिचार करता है, वह “गृह-भेदन" करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस गृह में या उसके किसी भाग में एतस्मिनपश्चात् वर्णित छह तरीकों में से किसी तरीके से प्रवेश करता है या यदि वह उस गृह में या उसके किसी आग में अपराध करने के प्रयोजन से होते हुए, या वहां अपराध कर चुकने पर, उस गृह से या उसके किसी आग से ऐसे निम्नलिखित तरीकों में से किसी तरीके से बाहर निकलता है, अर्थात् :--
(क) यदि वह ऐसे रास्ते से प्रवेश करता है या बाहर निकल्नता है, जो स्वयं उसने या उस गृह-अतिचार के किसी दुष्प्रेरक ने वह गृह-अतिचार करने के लिए बनाया है ;
(ख) यदि वह किसी ऐसे रास्ते से, जो उससे या उस अपराध के दुष्प्रेरक से भिन्न किसी व्यक्ति द
The language translation of this legal text is generated by AI and for reference only; please consult the original English version for accuracy.