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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता

(बीएनएसएस)

मामलों और अपीलों को अंतरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति।

अध्याय 33: आपराधिक मामलों का अन्तरण

धारा: 447


(1) जब कभी उच्च न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि--

(क) उसके अधीनस्थ किसी दंड न्यायालय में ऋजु और पक्षपातरहित जांच या विचारण नहीं हो सकेगा; या

(ख) किसी असाधारण कठिन विधिप्रश्न के उठने की संभाव्यता है; या

(ग) इस धारा के अधीन कोई आदेश इस संहिता के किसी उपबंध द्वारा अपेक्षित है, या पक्षकारों या साक्षियों के लिए सामान्य सुविधाप्रद होगा, या न्याय के उद्देश्यों के लिए समीचीन है,

तब वह आदेश दे सकेगा कि--

(i) किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे किसी न्यायालय द्वारा किया जाए जो धारा 497 से धारा 205 (दोनों सहित) के अधीन तो अर्हित नहीं है, किन्तु ऐसे अपराध की जांच या विचारण करने के लिए अन्यथा सक्षम है;

(ii) कोई विशिष्ट मामला या अपील या मामलों या अपीलों का वर्ग उसके प्राधिकार के अधीनस्थ किसी दंड न्यायालय से ऐसे समान या वरिष्ठ अधिकारिता वाले किसी अन्य दंड न्यायालय को अंतरित कर दिया जाए;

(iii) कोई विशिष्ट मामला सेशन न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द कर दिया जाए; या

(iv) कोई विशिष्ट मामला या अपील स्वयं उसको अंतरित कर दी जाए, और उसका

The language translation of this legal text is generated by AI and for reference only; please consult the original English version for accuracy.

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