भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
(बीएनएसएस)
अध्याय 27: विकृतचित्त अभियुक्त व्यक्तियों के बारे में उपबंध
धारा: 368
(1) यदि किसी मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय के समक्ष किसी व्यक्ति के विचारण के समय उस मजिस्ट्रेट या न्यायालय को वह व्यक्ति विकृतचित्त और परिणामस्वरूप अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ प्रतीत होता है, तो वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय, प्रथमतः ऐसी चित्त-विकृति और असमर्थता के तथ्य का विचारण करेगा और यदि उस मजिस्ट्रेट या न्यायालय का ऐसे चिकित्सीय या अन्य साक्ष्य पर, जो उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, विचार करने के पश्चात् उस तथ्य के बारे में समाधान हो जाता है तो वह उस प्रभाव का निष्कर्ष अभिलिखित करेगा और मामले में आगे की कार्यवाही स्थगित कर देगा। (2) यदि मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय विचारण के दौरान इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त विकृतचित्त है, तो वह ऐसे व्यक्ति को देखभाल और उपचार के लिए मनश्चिकित्सक या रोग विषयक मनोविज्ञानी को निर्देशित करेगा और, यथास्थिति, मनश्
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