भारतीय न्याय संहिता
(बीएनएस)
अध्याय 1: प्रारंभिक
धारा: 3
3. (1) इस संहिता में सर्वत्र, अपराध की प्रत्येक परिभाषा, प्रत्येक दण्ड उपबंध और प्रत्येक ऐसी परिभाषा या दण्ड उपबंध का प्रत्येक दृष्टान्त, “साधारण अपवाद” शीर्षक वाले अध्याय में अन्तर्विष्ट अपवादों के अध्यधीन समझा जाएगा, चाहे उन अपवादों को ऐसी परिभाषा, दण्ड उपबंध या दृष्टांत में दुहराया न गया हो । दृष्टांत (क) इस संहिता की वे धाराएं, जिनमें अपराधों की परिभाषाएं अन्तर्विष्ट हैं, यह अभिव्यक्त नहीं करती कि सात वर्ष से कम आयु का बालक ऐसे अपराध नहीं कर सकता, किन्तु परिभाषाएं उस साधारण अपवाद के अध्यधीन समझी जानी हैं जिसमें यह उपबन्धित है कि कोई बात, जो सात वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा की जाती है, अपराध नहीं है ।
(ख) क, एक पुलिस अधिकारी, वारण्ट के बिना, य को, जिसने हत्या की है, पकड़ लेता है । यहां क सदोष परिरोध के अपराध का दोषी नहीं है, क्योंकि वह य को पकड़ने के लिए विधि द्वारा आबद्ध था, और इसलिए यह मामला उस साधारण अपवाद के अन्तर्गत आ जाता है, जिसमें यह उपबन्धित है कि “कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो”।
(2) प्रत्येक पद, जिसका स्पष्टीकरण इस संहिता के किसी आग में किया गया है, इस संहिता के प्रत्येक भाग में उस स्पष्टीकरण के अनुरूप ही प्रयोग किया गया है ।
(3) जब कोई सम्पत्ति किसी व्यक्ति के कारण उस व्यक्ति का पति या पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में है, तब वह इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत उस व्यक्ति के कब्जे में है ।
स्पष्टीकरण--लिपिक या सेवक की हैसियत से अस्थायी रूप से या किसी विशिष्ट अवसर पर नियोजित कोई व्यक्ति इस उपधारा के अर्थ के अन्तर्गत लिपिक या सेवक है
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